संस्कार भारती की गोष्ठी में कविता और संस्कार का अनूठा संगम, कवियों ने किया मन्त्र-मुग्ध

हाथरस। संस्कार भारती के तत्वावधान में आयोजित एक विशेष गोष्ठी में साहित्य, संस्कृति और समाज के उत्थान पर चर्चा के साथ-साथ काव्यपाठ का भी भव्य आयोजन किया गया। वरिष्ठ कवि श्याम बाबू चिंतन की अध्यक्षता में आशुकवि अनिल बौहरे के आवास पर हुई इस बैठक में संगठन के भावी कार्यक्रमों और कार्यकारिणी विस्तार पर महत्वपूर्ण विचार-विमर्श हुआ। संगठन के संरक्षक अनिल बौहरे ने बताया कि संस्कार भारती जल्द ही अपनी कार्यकारिणी का विस्तार करेगा और समाज में सांस्कृतिक जागरूकता फैलाने के लिए नई योजनाएं शुरू करेगा। उन्होंने कहा कि हमारा उद्देश्य भारतीय संस्कृति और साहित्य को नई पीढ़ी तक पहुंचाना है।
कार्यक्रम की शुरुआत सरस्वती वंदना से हुई, जिसके बाद कवियों ने अपनी रचनाओं से सभा को मंत्रमुग्ध कर दिया। गोष्ठी में प्रस्तुत कुछ प्रमुख काव्य पंक्तियाँ:

आशुकवि अनिल बौहरे –
“बेमेल विवाह घालमेल आरती,
आह आह भूल रहे संस्कार भारती”

नैतिक दीक्षित –
“हां पता है युद्ध के परिणाम होते हैं भयंकर,

जागते महाकाल हैं और जाग जाते हैं प्रलयंकर”
पंडित हाथरसी –
“ब्याह हमारौ है भयो एक मैम के संग
इंग्लिश ऐसे बोलती हम रहे देख कर दंग”
पूरन सागर –
“आइये किसी की बेवजह मुस्कराने की वजह बने
खामोश इस शांत रहे बसर में गुनगुनाने की वजह बनें”
जिलाध्यक्ष चेतन उपाध्याय –
“संविधान के मंदिर को तब मंडी बनाकर रखा था.

और लोकतंत्र को तब खादी ने बंदी बनाकर रखा था “
प्रभुदयाल दीक्षित –
“मां चन्दा मां चांदनी, मां सूरज मां धूप,
मां जननी मां है गुरु मां ईश्वर का रूप”
डॉ सुनीता उपाध्याय – 
“ऊँचे घोर मंदर के अंदर रहन वाली ऊँचे घोर मंदर के अंदर रहाती हैं
 कंद मूल भोग कर कंद मूल भोग कर तीन वेर खाती हैं वो तीन बेर खाती हैं”
सोनाली वार्ष्णेय –
“जिंदगी में उम्मीद की खिड़की को हमेशा खुला रहने दीजिए
उलझनों की हवा तो रोज आती और जाती रहेगी”

इस अवसर पर संस्कार भारती के जिलाध्यक्ष चेतन उपाध्याय की ताई के निधन पर सभी ने भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की। कार्यक्रम का सुचारु संचालन संस्कार भारती के जिलाध्यक्ष चेतन उपाध्याय और पूरन सागर ने किया।
इस अवसर पर डॉ सुनीता उपाध्याय, दीप्ति वार्ष्णेय, नवीन गुप्ता, एआर शर्मा सहित कई साहित्य प्रेमी और समाजसेवी उपस्थित रहे।